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Showing posts from October, 2009
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रटन रटन के हम मरे, रसायनशास्त्र का ज्ञान, नींद आए क्या गजब, न होश रहे न ध्यान, पर झपकी जेसे ही लगी, पड़ा गाल पे वार, नालायक बेशर्म कह गुरूजी बरसे, लिख लाना सौ बार, लिख लाना सौ बार, शब्द जैसे ये बोले, घनघना उठा बदन। दरवाज़े दिमाग के खोले॥ पिताजी का हाल सोच सोच मन तरसाया। क्या गुरूजी पापा का बेकार में काम बढाया॥ ऋषभ जैन

कवि तो ख़ुद एक कविता हे!

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कवि तो ख़ुद एक कविता है उसमें अनंत गहराई है , है व्याकुलता , तन्हाई है , ढूंढ सको तो ढूंढ लो , एक ‘ सोता ‘ उसमें कहीं बहता है - कवि तो ख़ुद एक कविता है । दुनिया से बेगाना है , दुनियादारी से अनजाना है , अव्यक्त , उलझे भावों को , वो कागज़ पर लिख देता है - कवि तो ख़ुद एक कविता है । शब्दों की भी सीमायें हैं , कविता में कुछ अंश ही आयें हैं , सागर से निकली इन बूंदों में भी , कितना कुछ वो कहता है , कवि तो ख़ुद एक कविता है । उन शब्दों को हम ना ताकें , गर उस हलचल को पहचान सके । क्या कहना आख़िर वो चाहता है , उन अर्थों को हम जान सकें , बेचैनी , उमंग नीरवता को भी , वो लफ्जों में कह देता है । कवि तो ख़ुद एक कविता है । कविता तो एक माध्यम है , आख़िर तो कवि को पढ़ना है । कलम की इस सीढ़ी से , उसके ह्रदय तक चढ़ना है । वहाँ पहुंचोगे तो पाओगे एक कलकल करती सरिता है । कवि तो ख़ुद एक कविता है । ऋषभ जैन

अनंत

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क्या है सघन मेघों के उस पार , नही जानता । हो सकता है अंधकार , या हो सकते हैं सूर्य हजार , यही मानता । सत्य छुपा हो उस चोटी पर , जो हो मेघों से भी ऊपर । बादल से छनती किरण थाम लूँ , उस चोटी को लक्ष्य मान लूँ । विकट सरल बाधाएं चीर कर , पहुंचूंगा मैं जब उस चोटी पर । मैं निश्चय ही यह पाऊंगा , मैं भी एक सूर्य बन जाऊंगा ।। - ऋषभ जैन -

एक प्रेम पत्र

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एक प्रेम पत्र ( यह कविता मेने एक प्रत्योगिता के दौरान लिखी थी , इस कविता की ख़ास बात सिंहाव लोकं न छंद हे , इसमे जिस शब्द से वाक्य का अंत होता हे उसी से शुरुआत होती हे !) हम और तुम हे अलग संसार में, संसार हे अलग पर हम हे प्यार में, प्यार हे पवित्र चाहे दूरिया अपार हे, अपार दूरियों से ख़बर लाती बयार हे, बयार जे पैगाम को स्वीकार कर लो प्रिये, जीवन हे छोटा सा हम से प्यार कर लो प्रिये! नशे में हम,हुस्न तेरा जाम हे, जाम सा नशीला सुंदर तेरा नाम हे , नाम जप जप के गुज़रती हर शाम हे' शाम रात दिन दिल को न आराम हे, आराम हमे दे दो या जान ले लो प्रिये, जीवन हगे छोटा सा हमे प्यार कर दो प्रिये! महक तुम्हारी लगती हे उपवन सी, उपवन से बढ़कर लगती हो चंदन सी, चंदन सा सुनहेरा तुम्हारा रंग रूप हे, रूप हे किरणे मानो सर्दी की धूप हे, धूप छाव जिंदगी की हमारे नाम कर दो प्रिये, जीवन हगे छोटा सा हमे प्यार कर दो प्रिये! प्यार के बिना प्रिये में बिलकुल अधुरा हूँ , अधूरे सपने लिए एक कागज़ में कोरा हूँ। कोरे इस कागज़ को कलम का इंतज़ार हे, इंतज़ार में

अभिव्यक्ति के कुछ पन्ने

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रंगमंच जिंदगी के रंगमंच पर, जी लो अपने किरदार को यारो, राजा बनो या रंक, दिखाओ अपना रंग, बस हिम्मत न हारो! किरदार को भगवान् मान, साधक बन जाओ, काम करो पुरे दिल से, उसमें रम जाओ! पोशाक भले केसी भी जगाए संवाद तुम्हारे जोश jagae मुस्कुराता चेहरा देख तेरा हर दर्शक थम जाए! अभिनय एसा हो की हर शख्स सराहे कठिनाई केसी भी हो व्यक्ल्तित्व पर शिकन न आए! अंत में जब मंचन हो पुरा और गिर जाए परदा रहे तुम्हारा किरदार अमर लोगो की यादो में जिन्दा! ऋषभ जैन