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Showing posts from December, 2011

खोया हूँ ...

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एक अटकी सांस, कुछ उलझे अलफ़ाज़, चंद उधार धड़कने, मेरा कुछ भी तो नहीं मुझमे | रे पगली, तू मुझको मुझमें क्यों ढूंढ़ती है? में तो खोया हूँ तुझमे | 

जंगलराज

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सच जानते है सब,  पर बेखबर है | क़ानून के हाथ लम्बे  है, पर बेअसर है | हर दबिश से पहले, दबे पाओं की आहट है | राजनीतिक गलियारों में, सरेआम सुगबुगाहट है | इन व्याभिचारियों के आगे, क़ानून ज़रा छोटा है | पहचान कर भी सबूत नहीं, अच्छा सिला मुखौटा है |    यहाँ परचम उन्हीं का चलता है,  कुनबा उनका आबाद है |  वे मरकर भी आरोपी है, ये ह्त्या कर भी आज़ाद है |

लोग कहते है ...

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ऐ खुदा, तुझे ढूंढा | इबादतगाहों में. दीवारों-दरख्तों में, संत-फकीरों में, ना मिला | . फिर इक रोज़ राह चलते, नूर दिखा तेरा | . और  ये नादां लोग, हँसते है, शायद जलते है मुझसे| कहते है, मुझे प्यार हुआ है | 

सत्य मेव जयते

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(आज देश के जो हालत है  उनसे कोई अनभिग्य नहीं | सफ़ेद झूट को सच बना कर परोसा  जा रहा है और हम लाचार से सब देख सुन रहे है| सच की जीत अब सिर्फ फिल्मो में होती है, कई बार वह भी नहीं | ऐसे में एक आम आदमी आखिर क्या कहे ? क्या करे ? इस प्रश्न का जवाब भी एक आम आदमी ही दे सकता है ... तो झांकिए अपने भीतर, आप लड़ना चाहते है या डर-डर के मरना चाहते है ... ) इस देश में सच के रखवालों के नाम  एक युवा का पैगाम   सत्य वचन की रीत जहाँ थी, जन-मानस की भाषा मे, प्राण जाए पर वचन न जाएं, था मानव की परिभाषा में | जहाँ राम ने और कृष्ण ने, असुरों का संहार किया, यदि शीश है उठा पाप का, मस्तक पर प्रहार किया | उसी देश के वाशिंदे, अंधी परिपाठी पर झूल गय, स्वाभिमान तो बचा नहीं गाँधी की लाठी को भूल गए |  अर्थ नहीं समझते तो क्या, गर्व से हम कहते ... सत्य मेव जयते, हाँ भैया ! सत्य मेव जयते ||   गांधी के आदर्शों पर जहां कालिख पोती जाती है, भूखे बच्चे हर रात जागते, सरकारे सोती जाती है |  मातृभूमि की दशा देख, शूर पृथ्वीराज शर्मिंदा है, जहाँ वीरता थी बस्ती, बस जयचंद वह अब जिंदा है | भ

एक "Facebukiya" प्रेम कहानी ...

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Facebook पर हुआ प्यार, Facebook पर ही इकरार, Farm-ville में हुई शादी, और शुरू हो गयी तकरार, chat पे चिक चिक, ♥ U ... F U ... , finally, divorce हो गया Distanc e Learning Course हो गया ||

Placement Season "इस्पेसल'

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Intern का बुखार है, Placements की तलवार है, कम्पनी काँटा फेंक रही ... अटक गए, या लटक गए | लाइन लगी बड़ी लम्बी, घुसने को धक्का मुक्की, अच्छी सीट चाहिए तो, झगड़ लो.. या नबड लो | कुछ के पापा की है कम्पनी, उनको जॉब नहीं करनी, वेसे भी उनकी नहीं लगनी, लक्की बेटा, ऐश करो, मौका केश करो | जिनको नहीं है शांति, सोचते है करेंगे क्रांति, स्टार्ट-अप कर लो अपना, हो सकता है- fart हो, हो सकता है-flipkart हो |  वो हरे लिफाफे फेंक रहे, कई हाथ बढ़ा कर सेक रहे, पर दिल भी बहुत जला रही. तुम कौन  हो ?? ये समझ लो | अगर कोई बात नहीं बने, खोटा सिक्का नहीं चले,  AOL का कोर्स करो, बाबा बनो, योग करो |||