परछाई
परछाई कहती नहीं मुश्किल है सफर , परछाई पूछती नहीं मजिल है कहाँ , परछाइ छोड़ती नहीं तुम्हें तेज़ धुप में , बस चुप - चाप साथ चलती है , नंगे कदमों को ज़मीं से छूने नहीं देती | जब होती है नज़रें तुमपर , जब होता है रोशन जहाँ , जब जुबां चखती है शोहरत का स्वाद , छुप जाती है कहीं पीछे कोने में परछाइयाँ , लेकिन अँधेरे में हर ओर ढक लेती है मुलायम कम्बल सी | बेसुरे गीत सुनती है तेरे , बाँटती है तन्हाइयाँ झील किनारे , सुनती है हर शिकायत ख़ामोशी से , वो थामे रखना चाहती है तुझे , चाहे ढलता सूरज जिंदगी खत्म कर रहा हो उसकी | हर दुःख में सहलाती है वो , हर करवट वो तेरे साथ बदलती है , हर ग़मगीन रात में जागती है साथ तेरे , हर ज़ख़्म सहती ... ... सरकती ताउम्र ... दूर होती नहीं , समय , किस्से , जिंदगी तक खो जाती है , परछाई खोती नहीं | ऐ खुदा! ! बस दुआ दे इतनी , एक हमसफ़र मिले , एक दोस्त मिले , जो परछाई बने मेरी , और ... जिसकी परछाई मैं बन सकूं || सुन कर देखें ...