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Showing posts from November, 2012

वक्त

बेटा! क्यों घर नहीं आता ? पापा! वक्त नहीं मिलता| बेटा! कुछ वक्त बचाया था, अपने बुढापे के लिए, ज़रूरत हो तो ले जाना' यहाँ बेमतलब रखा है|

गुनाह

गुनाह करना  जिस देश में  गुनाह नहीं || उस देश का मैं  गुनेहगार हूँ ... मैं ईमानदार हूँ || ~~Rishabh~~

दीपावली ...०

दीवाली पे घर जाएँ कैसे ? हमरी रेल का कुछ ये है हाल ... सारी रात लगो लाइन में, फिर भी कहलाता तत्काल 

दीपावली ... २

हज़ारों का बारूद, पल में जला गए | सड़क पे भूखी बच्ची, क्यों नहीं दिखी? एक ओर तो लौ  जला के रक्खी है,  फिर रोशनी उससे, क्यों छुपा रखी? उसके नसीब में क्या, बस धुंआ है जश्न का, उसके नसीब में क्या, बस उत्सव का शोर है, शायद ... Who cares!

दीपावली ... १

तेरा घर तो है रोशन, क्यों दीये जलाता है? जो अँधेरे करो रोशन, तो सफल दीवाली हो| ~~Rishabh~~

ज़िंदा

तुम्हें देखा आज, एक ज़माने बाद, . कुछ देर  साँसे अटकी,  फिर,  दिल धडकने लगा,  . मैं ज़िंदा हूँ अबतक , ये लगने लगा||  ~~ऋषभ~~

वक्त, तब और अब

एक वक्त था,  हम छोटे थे ... थोडा डर था, कुछ चिंता थी, सपने भी थे, आशंका भी,  कुछ उसूल तब हुआ करते थे, बेमन पर मना किया करते थे| . नए चेहरों से कतराते थे तब, इम्तिहानों से घबराते थे तब, दस्सी लगने पर इतराते थे तब, लड़ते भी थे, चिल्लाते भी थे तब, . क्लास टाइम पे जाते थे, लाइब्रेरी में मगने आते थे, हर इम्तिहान हमें डराता था, सारी रात जगाता था, . सीनिअर तब 'फंडे' दिया करते थे, घोड़ा-गिरी हम किया करते थे, पेफ में लेई लगाते थे तब , होस्टल चीअरिंग को जाते थे तब, . उठकर रोज़ नहाया करते थे, मरीन ड्राइव जाया करते थे. हर बंदी को देखा करते थे, कुछ कहने से लेकिन डरते थे, . कुछ बातें, अब भी है वैसी , . लेकिन ... . अब रातों को उतना 'लुक्खा' नहीं काटते, घर का खाना चुराने पर उतना नहीं डांटते| . अब एंड-सेम से उतना डरते नहीं है, क्रिकेट स्कोर पर उतना लड़ते नहीं है| . अब हर दीवाली पे घर नहीं जाते, पुराने दोस्त अब उतना याद नहीं आते,, फोन पे अब घंटों बतियाते नहीं है, दिल की बात दोस्तों को बताते नहीं है | . कुछ और अब दिखता नहीं, खुद में हम इस क

फूल

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फूल, खिलते है, महकते है, मुरझाते है, बिखर जाते है| . लेकिन, इक दिया था जो तुमने, कई साल पहले ... . मेरी डायरी रखा, वो आज भी ज़िंदा है ||