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कौन समझाए (चलचित्र )

एक फ़रिश्ता

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इस अनजान भीड़ में मैने खुद को खोया है, पत्थर के खेतों में बीजों को बोया है, इस दुनिया में लोगों के पास ज़ुबां तो है , लेकिन कान नहीं , वहा गीत गाने का ख्वाब संजोया हें!! तालियाँ सब बजाते है पर वो नाटक का एक हिस्सा है . प्यार कर बैठते हें लोग पर वो ज़माने का एक किस्सा हें! ढूंढते रह जाते हें जिंदगी भर एक हाथ थामने को, क्योंकि विश्वास हें दिल में खुदा ने छुपाया हमरे लिए भी एक फ़रिश्ता हें!!

कौन समझाए उन बातो को!!

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कौन समझाए उन बातो को. अनसुलझे से जज्बातों को!! चाँद चमकता नील गगन में, चांदनी चमके सूने चमन में! कालिया सोई हे सारी सपन में, अल्हड़पन है बहती पवन में! सब होता हे क्यों इतना सुन्दर... होता हु तन्हा मै जिन रातो को!! कौन समझाए उन बातो को. अनसुलझे से जज्बातों को!! सावन की वो पहली बूंदे, छूते थे जिन्हें हम आंखे मूंदे! वो एकही छाते में छुप जाना, फिर उसे छोड़ के खुद को भिगाना! मौसम बदले हे तब से अनेकों... पर भुला नही उन बरसातों को!! कौन समझाए उन बातो को. अनसुलझे से जज्बातों को!! ढलती वे शामे साथ बिताना, वक़्त को जैसे पर लग जाना! हौले हौले नज़रे मिलाना, नयन सिन्धु में फिर खो जाना! साथ सफ़र पर सब कुछ ले गई. छोड़ा है पीछे बस यादो को!! कौन समझाए उन बातो को. अनसुलझे से जज्बातों को!! ऋषभ जैन