खुदा!! (उर्दू में पहली कोशिश )
[इस रचना में मैंने खुदा और कौम शब्द किसी धर्म विशेष के लिए नहीं लिखा है ! साथ ही कुरआन को किसी धर्म से न जोड़कर सच्चधर्म के रूप में देखा जाये ! मुझे ख़ुशी होगी अगर आप अपनी सोच वृहत रख कर ये पढेंगे ! मेरा उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओ को आहात करना नहीं है !! ] सियासत की सियाही में जो डूबकर लिक्खा ! लिक्खा नहीं था वो मैंने गद्दार ने लिक्खा !! पर ईमान की इबारत से मैंने शब्द जो उकेरे ! तारीफे ना मिली, लेकिन इंसान ने लिक्खा !! जिस ज़मीं को कई पीर पैगम्बरों ने सीचा ! रोशन था जहाँ चैन और अमन का बागीचा ! उस राम, बुद्ध महावीर की पाक ज़मी पे अब ! चलता नहीं है क्यों इमान का सिक्का !! ऐ मददगार ! तुने इतने ज़ुल्म ज़ख्म जो किये ! छीने है कई अश्क! सितम, दर्द जो दिए ! क्यों बेशर्म सा तभी भी तू छुपकर है यूँ बैठा ! ऐ खुदा, ऐ सितमगार अपना नूर (चेहरा) तो दिक्खा !! जिन्होंने मासूम जिंदगियों के बुझाए कई दिये ! कौम के नाम पर कलम काफिरों के सर कई किये ! वे गुनेहगार इंसानियत के, इबादत को जो आये ! ऐ खुदा ! ज़रा गौर से उन्हें कुरान तो सिक्खा !! ऋषभ jain