दिल

जब से तुम गए,
दिल बेजान सा पड़ा था !
ना कोई धड़कन ,
ना जज़्बात ,
ना ही कोई चाहने वाल !
सोचा बेच आऊ हाट पर
कुछ गुज़ारा चले !!
लोग आते,
दिल की नुमाइश होती,
उठा पटक कर
जांचा जाता,
घूरा जाता,
हाँ का स्वर उभरता चेहरे पर

लगता
ये ले जाएगा दिल को
उसे आसरा देगा
पर अचानक
ना जाने क्यों?
वे एक आह के साथ
रख जाते दिल को
बेबस सा बेघर !!


आखिर मैंने उठाया
पहली बार देखा ध्यान से
तब जाना सच,
मैं जानता नहीं कौन
पर कोई बेहया सा
दिल में
दरार कर गया था !!

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