एक चोमू था ...
[ये छोटी सी कहानी ठीक दो
साल पहले मैंने होली पर लिखी थी, इस कहानी के पात्र प्रेरित है लेकिन घटनाएं
काल्पनिक ... शायद]
एक चोमू है| अंडाकार मुँह, सामान्य
कद-काठी, सर पर खिचड़ी से बाल, सुनहरे फ्रेम का चश्मा और चेहरे पर नेताओं वाली
मुस्कान| मुझसे तीन कमरे छोड़ कर वो अकेला रहता है या यह कहना बेहतर होगा कि अकेला
कर दिया गया है| जब रोज़ सुबह बरामदे के आखिर कमरे से में उनींदी ऑंखें लिए निकलता
हूँ तो चोमू नहा कर लौट रहा होता है| एक हाथ में बाल्टी थामे, दूसरा हाथ उठा कर
आते हुए लोगो को 'गुड मार्निंग' बोलता है| लेकिन आठ महीने बीते किसी ने शायद ही
उसे पुनः अभिवादित किया हो| मेरे पास से गुजरते हुए आशाभरी नज़रों से वो मुझे भी देखता
है और मैं नींद में होने का बहाना कर पैर घसीटता आगे बढ़ जाता हूँ|
होस्टल का हर दिन एक उत्सव
है| हँसी- मजाक, गप्पे, क्रिकेट, ताश और वक्त मिला तो पढ़ भी लिए| लेकिन चोमू के
लिए ये उत्सव मात्र देखने का तमाश है| गुजरते हुए चोमू को लोग कुछ इस तरह अनदेखा
कर देते है जैसे खामोश हवा, जिसकी उपस्थिति को लोग महसूस तो करते है पर देख नहीं
पाते| अगर कभी उसने हिस्सा लेना भी चाहा तो उसी वक्त सभी को कुछ आवश्यक काम याद आ
जाता है और चोमू फिर अकेला रह जाता है| चेहरे कि हँसी गायब है, गुमसुम, उदास,
अकेला | एक अकेला आँसू आँख का बांध तोड़कर उसके गालों से बह चला, मानो वो भी उसका
साथ छोड़ चला हो|
स्थितियाँ हमेशा से ऐसी
नहीं थी| उसका असली नाम आनंद है| आनंद यादव|
तब सभी नए थे, देश के हर
कोने से, अलग – अलग आर्थिक, पारिवारिक स्थितियाँ| सभी ने ध्यान एक दुसरे को परखने, जांचने और तालमेल बिठाने में
लगा दिया और जल्द ही सभी के समूह और दोस्त बन गए| लेकिन आनंद किसी समूह में ना था|
शायद वो खुद को खास समझता था, मिजाज़ में अकड़पन और घमंड| हमने बात करने कि कोशिश की,
ज़रा समझाया भी पर कोई असर नहीं| इसी सिलसिले में बात ज़रा बढ़ गयी| आनंद के व्यवहार
ने भी आग में घी का काम किया| जल्द ही सब आनंद से नफरत करने लगे| उसके कमरे के
बाहर बड़े बड़े अक्षरों में चोमू लिख दिया गया और कमरों की लंबी कतार से एक कमरा उसमे
रहने वाले के साथ काट दिया गया|
इस तरह आनंद चोमू बना और आज
तक जो हो रहा है वो उसी का नतीजा है, शायद यही चोमू चाहता था |
आज होली है, वो दिन जब सारे
गुनाह रंगीन पानी से धो दिए जाते है|
हम सभी चितकबरे रंगों में
सजे एक दुसरे पर रंग-गुलाल उड़ा रहे थे| लेकिन चोमू के चेहरे पर रंग की एक रेखा भी
नहीं| उसके सफ़ेद शर्ट पर कुछ रंग भरे हाथों के निशाँ ज़रूर थे, जो शायद जानबूझ कर
लोगो के गले मिलने से बने थे| लोग मस्ती में इतने उन्मुक्त थे के शायद उससे दूर
भागना भूल गए थे, पर फिर भी उन्हें इतना याद था कि चोमू को रंग न लगाया जाए| आखिर
वो कितनी कोशिश करता| उसका घमंड तो बहुत पहले ही हार चुका था, आज चोमू खुद भी हार
गया| किसी ने नहीं देखा पर वो आँसू पोंछता हुआ बरामदे से बाहर निकल गया| अनजाने
में ही उसने हाथों में लगे रंगों से अपना चेहरा खुद ही रंग दिया था| बरामदे के
आखिरी सिरे पर खड़ा मैं यह देखता रह गया| मुझे खुद पर शर्म आ रही थी| एक घुटन भी,
मानो एक गहरे सच में अचानक डूबाया गया हो|
ये हम क्या कर रहे है? अगर
ये सब मेरे साथ हो रहा होता तो मैं शायद आंसुओं को छुपाने के काबिल भी ना रहता| घर
से कई सौ मील दूर अगर आज भी कभी माँ की याद आती है तो दोस्त की गोदी में सर रख सो
जाता हूँ| वहीँ शायद वो रात भर जागकर ठंडा तकिया और सीलन भरी दीवारें ताकता होगा|
दोस्तों के बिना हर लम्हा एक सजा है फिर यहाँ तो आठ महीने बीत चुके है| वक्त के
थपेड़े पहाड़ों को भी घिस देते है फिर चोमू तो इंसान है| वो शायद बदल गया है| हमने
उसे एक बार चोमू तो बना दिया लेकिन फिर कभी आनद बनने का मौका ना दिया|
मैं कसम खाता हूँ कल सुबह
उठकर खुद उसे 'गुड मार्निंग' बोलूँगा |
एक चोमू था ...
Nice :)
ReplyDeleteMaine itna dilchasp bayaan aaj tak nahin suna... Ya phir kahoon to itna rangeen bayaan aaj tak nahin suna... Rangon ke mele me uss berasad andhere rang ko jis tarah se pesh kiya hai wo waqui kaabile taarif hai.... Ummeed hai yoon hi aap hum pe rang chhint'te rahe :)
ReplyDeleteकाबिले तारीफ बयां किया हे मानव व्यव्हार
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