एक कलाम, जगजीत के नाम
ग़मों पर सरगम सजा, वो धुन सुनाता रहा, जुबां ने चुप्पी साध ली, वो ग़ज़ल गुनगुनाता रहा। वो इश्क भी एक झूठ था, झूठे उम्र भर के वायदे, जिनके शहर थे उजड़ गए, उनके घर बनाता रहा। तेरे हुस्न की बारीकियां तेरे होंठों से नजदीकियां, लगा सामने तू आ गया, वो ग़ज़ल सुनाता रहा। जब शोर में संगीत था, और संगीत में शोर था, तूफानी वो दौर था, वो कश्ती कागज़ की चलाता रहा।