एक कलाम, जगजीत के नाम
ग़मों पर सरगम सजा,
वो धुन सुनाता रहा,
जुबां ने चुप्पी साध ली,
वो ग़ज़ल गुनगुनाता रहा।
वो इश्क भी एक झूठ था,
झूठे उम्र भर के वायदे,
जिनके शहर थे उजड़ गए,
उनके घर बनाता रहा।
तेरे हुस्न की बारीकियां
तेरे होंठों से नजदीकियां,
लगा सामने तू आ गया,
वो ग़ज़ल सुनाता रहा।
जब शोर में संगीत था,
और संगीत में शोर था,
तूफानी वो दौर था,
वो कश्ती कागज़ की चलाता रहा।
बहुत ही खूब...एक-एक पंक्तियाँ उनके गजल-सफर को बयां करती हुई |
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय मिलें तो बस एक झलक-"मन के कोने से..."
आभार...|
गया नहीं वो दूर दिल से
ReplyDeleteबस नज़र से दूर है
ज़िन्दगी के अंधेरों में
वो नूर बन के आता रहा ...
एक ग़ज़ल इसी ख्याल के नाम
http://www.youtube.com/watch?v=iAW-IBzFbsE
@Sunil Sir ...
ReplyDeletemeri bhi pasandeeda hai :)