हर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें ! सिमटी हुई सी, कभी आस्तीन कभी जेब कभी महक में छुपी ! झांकते है कुछ लम्हे कुछ यादे, उन सिलवटो और निशानों से ! और सुनाते हें एक कहानी उस सफर की, जो उसके धुलने के साथ ही भुला दिया जाएगा ! हर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें !! . . राजू का मिटटी से सना स्कूल का नीला शर्ट बता रहा हें कि आज उसने खेला है फुटबाल क्लास छोड़ कर ! कुछ भीगी सी आस्तीने गवाह हें कि पसीना फिर उसने बाज़ुओ से ही पौछा है ! . पड़ोस कि आंटी की लखनवी डिजाईनर साड़ी पर लगे सब्जी के निशान बता रहे है भोज में आये मेहमानों कि भूख को ! रोज़ मोहल्ले का डान बनकर घूमने वाले महेश कि शर्त फटी हुई हें आज, वो पिट कर लौट रहा है या हवालात से ! . बड़े भैया के एक बाजू से महक रहा है जनाना इत्र, उस लड़की का जिसके हाथ थाम जनाब सिनेमा देख आये हें ! पिताजी का सिलवटो और पसीने से भरा शर्ट हिसाब देता हें उन पैसो का, जो हम बेफ़िक्री से उड़ाते हें ! माँ की साड़ी में गंध और कालिख हें कोयल...
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