तस्वीर
पुराने बंगले में, पीछे,
एक लंबा, खामोश गलियार है।
ठंडा और सीलन भरा,
हवा तक कतरा के जाती है।
बेरंग दीवारों पर,
रंगहीन तस्वीरों की कतार,
जाने कब से टंगी है।
सर्दी में,
पीपल के पत्तों से बचकर, रोशनी,
अधखुली खिड़की चढ़कर ,
अन्दर आ जाती है,
कोशिश करती है,
तस्वीरों को रंगने की।
पुराने बंगले में, पीछे,कोशिश करती है,
तस्वीरों को रंगने की।
एक लंबा, खामोश गलियार है।
फुरसत में इक दिन,
कदम गए उस ओर,
देखा तस्वीरों को निहारता,
वक़्त मायूस सा खड़ा है।
वजह पूछी तो, जवाब मिला,
"क्या बताऊँ दोस्त! ...
... आजकल वक़्त कुछ ठीक नहीं।"
hmmm....gulzar si shaili ka prayog...sundar hai..
ReplyDeleteshkriya :)
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