एक वक्त था, हम छोटे थे ... थोडा डर था, कुछ चिंता थी, सपने भी थे, आशंका भी, कुछ उसूल तब हुआ करते थे, बेमन पर मना किया करते थे| . नए चेहरों से कतराते थे तब, इम्तिहानों से घबराते थे तब, दस्सी लगने पर इतराते थे तब, लड़ते भी थे, चिल्लाते भी थे तब, . क्लास टाइम पे जाते थे, लाइब्रेरी में मगने आते थे, हर इम्तिहान हमें डराता था, सारी रात जगाता था, . सीनिअर तब 'फंडे' दिया करते थे, घोड़ा-गिरी हम किया करते थे, पेफ में लेई लगाते थे तब , होस्टल चीअरिंग को जाते थे तब, . उठकर रोज़ नहाया करते थे, मरीन ड्राइव जाया करते थे. हर बंदी को देखा करते थे, कुछ कहने से लेकिन डरते थे, . कुछ बातें, अब भी है वैसी , . लेकिन ... . अब रातों को उतना 'लुक्खा' नहीं काटते, घर का खाना चुराने पर उतना नहीं डांटते| . अब एंड-सेम से उतना डरते नहीं है, क्रिकेट स्कोर पर उतना लड़ते नहीं है| . अब हर दीवाली पे घर नहीं जाते, पुराने दोस्त अब उतना याद नहीं आते,, फोन पे अब घंटों बतियाते नहीं है, दिल की बात दोस्तों को बताते नहीं है | . कुछ और अब दिखता नहीं, खुद में हम इस क